सर्द रात की स्याही ज़रा छँटने लगी है

सर्द रात की स्याही ज़रा छँटने लगी है
मेरे कमरे की खिड़की अब खुलने लगी है
कल तक चाँद सितारे मुझे पास बुलाते थे
आसमान में नाच नाचकर टिमटिमाते थे

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यह ज़रूरी नही हर सक्ष्स मशीहा ही हो,